वीरता की परिकाष्ठा, त्याग की परिकाष्ठा, बलिदान की परिकाष्ठा
पिता श्री गुरू तेग बहादुर जी का बलिदान,
चारों साहबजादों का बलिदान, अपना बलिदान,
धर्म की रक्षा के लिए देश की रक्षा के लिए हिन्द की चादर बन कर बलिदानों की चरम सीमा ऐसे वीर बालकों को नमन् है
कवि ने लिखा
कहीं पर्वत झुके भी हैं, कहीं दरया रूके भी हैं,
नहीं रूकती रवानी है, नहीं झुकती जवानी है,
जोरावार जोर से बोला, फतेह सिंह शोर से बोला,
रखो ईंटे भरो गारे, चुनो दीवार हत्यारे,
निकलती सांस बोलेगी, हमारी लाश बोलेगी,
यही दीवार बोलेगी, हजारों बार बोलेगी,
नहीं हम रूक नहीं सकते, नहीं हम झुक नहीं सकते,
हमें निज देश प्यारा है, पिता दशमेश प्यारा है,
हमारे देश की जय हो, पिता दशमेश की जय हो।
‘‘हमारे धर्म की जय हो, श्री गुरू ग्रन्थ की जय हो,
नहीं हम रूक नहीं सकते, नहीं हम झुक नहीं सकते’’