13 अप्रैल 1919 त्याग और बलिदान की परिकाष्ठा का मंज्जर
जलियांवाला बाग अमृतसर में एकत्र थे हजारों देश भक्त पुरूष, महिला, बालक-बालिकाएं। वैशाखी का महान पर्व था, सभी भारतीय निहत्थे थे, शान्ति पूर्वक थे, जलियांवाला बाग को चारों और से अंग्रेज सेना ने घेर लिया, सारे दरवाजे बंद कर दिए गए, बन्दूको के मूंह आम जनता की ओर कर दिए गए।
क्रूर, निर्मम, निर्जल अंग्रेज सरकार के जनरल डायर ने गोलियां चलाने का हुक्म दे दिया। हजारों गोलियां एक साथ चलने लगी सब ओर हाहाकार था, चीत्कार थी, कोई सुनने वाला नहीं था, कोई भागने की जगह नहीं थी, सभी दरवाजे बंद थे। लोगों ने अपनी जान बचाने के लिए बाग में स्थित कूंए में छलांगे लगाना शुरू की, देखते ही देखते कूंआ लाशों के ढेेर से भर गया। हजारों लोग जिसमें अबोध बालक-बालिकाऐं, महिलाऐं शामिल थी उन्हें मृत्यु के घाट उतार दिया गया। हजारों लोग घायल हुए, अपंग हुए।
देश को अंग्रेज हुकूमत ने कसाई घर बना दिया था, आजादी के लिए दिए गए बलिदान की यह अमर गाथा जिसने क्रान्तिकारियों के खून खौला दिए और सैंकडों क्रान्तिकारियों ने अपना सर्वस्व होम करके अंग्रेजी हूकूमत को जड़ से उखाड़ दिया।
आज हम उन बलिदानियों के बलिदान के कारण आजाद हैं उन सभी देश भक्त बलिदानियों को नमन करते हैं।