बाल गंगाधर तिलक जी की जयन्ती पर उन्हें शत-शत नमन
भारत देश सदियों तक अपनी आजादी के लिए लड़ता रहा। मुगलों की गुलामी का काल खण्ड बड़ा भयावह था और उसके बाद अंग्रेजों की गुलामी शुरू हो गई। भारत देश ने कभी भी गुलामी को हृदय से स्वीकार नहीं किया, देश में कहीं-न-कहीं व कभी-कभी पूरे देश में भिन्न-भिन्न तरीकों से गुलामी के खिलाफ संघर्ष चलता रहा।
अलग-अलग कालखण्ड में अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग देशभक्तों ने गुलामी के खिलाफ संघर्ष किया। एक समय ऐसा आया जब दक्षिण में श्री कृष्ण देव राय, मध्य भारत में छत्रसाल, पश्चिम में शिवाजी महाराज, उत्तर-पश्चिम में महाराणा प्रताप, उत्तर में गुरू गोबिन्द सिंह जी महाराज ने एक साथ आजादी की अलख को जगाया। अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की पूरे देश में अलख जागने वाले 3 महान रत्न हुए ‘‘लाल-बाल-पाल’’ लाला लाजपत राय उत्तर भारत में, बाल गंगाधर तिलक पश्चिम भारत में, विपिन चन्द पाल पूर्व भारत में एक साथ अंग्रेजों के खिलाफ खडे़ हो गए और आजादी के आन्दोलन को विशाल रूप दे डाला। ऐसे बाल गंगाधर तिलक का जन्मदिवस 23 जुलाई को आता है, हम उन्हें शत्-शत् नमन करते हैं।
वे एक प्रकाण्ड विद्वान, अपनी लेखनी के धनी, योजनाएं बनाना और उन्हें साकार करना, जैसी कलाओं में पारंगत थे, हमारे बाल गंगाधर तिलक जी। श्री भगवत गीता का बेहतरीन लेखन व अनुवाद तिलक जी ने किया और भारत के हर घर में गीता का ग्रंथ पहंुचे इसके लिए उन्होनें वृृहत प्रयास किए।
अंग्रेजों के खिलाफ जन मानस को तैयार करने के लिए देशभक्ति की अलख जगाने के लिए और हिन्दु समाज को इक्कठा करने के लिए बाल गंगाधर तिलक जी ने एक अनूठा तरीका निकाला। पश्चिम भारत में गणेश चतुर्थी का पर्व बहुत ही श्रद्धापूर्वक मनाया जाता है, बस इतना ही तिलक जी के लिए काफी था। तिलक जी ने गणेश चतुर्थी के त्यौहार को एक बडा स्वरूप दे डाला। गणेश जी की प्रतिमाओं का निर्माण होना, उनके पंडालों का सजना, उन पंडालों में अनेक-अनेक दिनों तक पूजा-अर्चना होना और अन्त में गणेश जी की प्रतिमाओं का विसर्जन भी एक बडे स्तर पर होना, यह सब तिलक जी द्वारा रचित पटकथा का स्वरूप है। पश्चिम भारत में यह करिश्मा हो गया कि वे गणेश चतुर्थी के पंडाल आजादी के अन्दोलन के प्रचार के बडे मन्दिर बन गए। सामान्य समाज सम्पूर्ण आजादी की मांग करने लगा और हजारों पूर्ण कलिक कार्यकर्ता इन गणेश चतुर्थी पंडालों से निकलकर आजादी के सिपाही बनकर खडे हो गए। समाज में नवचेतना का संचार हुआ और तिलक जी ने कह डाला कि ‘‘स्वराज हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है, इसे हम लेकर रहेगें’’।
तिलक जी, अंग्रेजों की बर्बरता का शिकार हुए। अंग्रेजों द्वारा जेलों मेें बार-बार लेकर जाना तिलक जी के लिए आम बात हो गई थी। देखते-ही-देखते इस ‘‘लाल-बाल-पाल’’ की तिकडी ने कांग्रेस के महाआन्दोलन को जन्म दिया जिसे बाद में महात्मा गांधी जी ने नेतृत्व प्रदान किया।
ऐसे महापुरूष बाल गंगाधर तिलक जी के श्री चरणों में नमन करते हुए उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित करता हूं।
आपका अपना
डॉ राजीव बिन्दल
प्रदेश अध्यक्ष, भाजपा हि.प्र.